आहें तेरे इश्क़ में
अब भरता रहा हूँ
तेरे बिना में आज भी
तेरे नाम से जीता रहा हुँ |
एक न छूटने वाला
आदत सी बन गयी है तू
आहें भरताहूँ लेकिन
तेरा इबादत करता रहा हूँ।
तेरे उन झील सी आँखों में
कई बार डुबकी लगाया था हमने
उन आँखों में आज भी
खुदके सपनें सज़ा रहा हूँ।
इसी इश्क ने एकदिन
जीनेका सलीका सिखाया था हमको
शायद इसीलिए आज
मरते हुए भी जी रहा हूँ।